जस्टिस जोसेफ मामले में सरकार की सफाई, नाम वापसी का उत्तराखंड फैसले से कोई संबंध नहीं

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ की पदोन्नति की सिफारिश थी, लेकिन केंद्र सरकार ने कॉलेजियम की इस सिफारिश को ठुकरा दिया था. इस पर सरकार ने सफाई दी है कि सिफारिश ठुकराने के पीछे उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन का मामला कतई नहीं है. सरकार ने बुधवार को इस बात को खारिज कर दिया कि उत्तराखंड के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ की सुप्रीम में नियुक्ति के प्रस्ताव को उसने इसलिए ठुकरा दिया कि उन्होंने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को पलट दिया था.


कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के तीन फैसलों से सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा भेजे गए प्रस्तावों पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकती है. प्रसाद ने कहा कि वह पूरे अधिकार के साथ इस बात से इनकार करते हैं कि इसका उससे कोई लेना-देना है. उन्होंने कहा कि अपने रूख का समर्थन करने के लिए उनके पास दो स्पष्ट कारण हैं.


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कानून मंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में तीनचौथाई बहुमत के साथ सरकार चुनी गई है. दूसरा, सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेएस खेहर ने उस आदेश (न्यायमूर्ति जोसेफ) की पुष्टि की थी. न्यायमूर्ति खेहर ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून को भी खारिज कर दिया था. इसके बाद भी वह राजग सरकार के कार्यकाल में प्रधान न्यायाधीश बने. 
प्रसाद ने न्यायपालिका के संबंध में पूर्व प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढ़ा की टिप्पणी पर कोई प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया और कहा वह सेवानिवृत्त न्यायाधीश के बयान पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे. 


सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति जोसेफ की नियुक्ति को रोकने के फैसले के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में प्रसाद ने कहा कि सरकार के खिलाफ प्रायोजित आरोप लगाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आमतौर पर और विशेष रूप से कांग्रेस द्वारा सरकार के खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं कि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन संबंधी उनके फैसले को लेकर उनकी नियुक्ति को रोका गया.


बता दें कि सरकार ने 26 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम से कहा था कि वह न्यायमूर्ति जोसेफ के संबंध में अपनी सिफारिश पर पुनर्विचार करे. 




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