- एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और देश भर में दलित आंदोलनों से भाजपा की मुश्किलें बढ़ी हैं।
- 224 में से करीब 100 सीटों पर दलित और आदिवासी समुदाय के वोटर्स का असर।
बेंगलुरु.देश भर में पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के एससी/एसटी एक्ट पर फैसले के बाद काफी विरोध-प्रदर्शन हुए। केंद्र सरकार ने इसे देखते हुए फैसले के विरोध में तुरंत सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की थी। इसकी एक बड़ी वजह कर्नाटक चुनाव भी था, क्योंकि राज्य में दलित और आदिवासी समुदाय के करीब 26% वोटर हैं। वहीं, राज्य से भाजपा के केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने भी कुछ दिन पहले कहा था कि संविधान में बदलाव होना चाहिए। इसका राज्य में काफी विरोध हुआ था।
100 सीटों पर प्रभाव
- कर्नाटक में विधानसभा की 224 में 36 सीटें एससी और 15 एसटी के लिए सुरक्षित हैं। राज्य में करीब 100 सीटों पर अच्छी खासी तादाद में दलित और आदिवासी समुदाय के वोटर हैं। राज्य की करीब 60 सीटों पर दलित समुदाय और 40 सीटों पर आदिवासी समुदाय के वोटर असर डालते हैं।
- 2014 के लोकसभा चुनाव में विधानसभा वार सीटों पर बढ़त के लिहाज से भाजपा 36 एससी सीटों में से 18 और कांग्रेस 16 सीटों पर आगे थी। वहीं, एसटी सीटों पर भाजपा 8 और कांग्रेस 7 सीटों पर आगे थी। अब भाजपा ने इन सीटों को बचाने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। वहीं, कांग्रेस भी जमकर मेहनत कर रही है।
सीएम सिद्दारमैया ने तीन समुदायों को मिलाकर अहिंदा बनाया है
- अहिंदा कन्नड़ शब्दों अल्पसंख्यातरू (अल्पसंख्यक), हिंदुलिदावरु मट्टू (पिछड़ी जातियां) और दलितरु (दलितों) का शॉर्ट फॉर्म है। इस समुदाय के कर्नाटक में करीब 60% वोटर हैं। सीएम सिद्दारमैया ने इनके लिए कई योजनाएं चला रखी हैं। सिद्दारमैया भी ओबीसी हैं। वह खुद को भी अहिंदा बताते रहे हैं।
- कांग्रेस के सीएम सिद्दारमैया दलित और आदिवासियों के लिए कई योजानाएं लॉन्च कर चुके हैं। इनमें गरीबों के लिए मुफ्त में अनाज, छात्रों के लिए दूध और किसानों के लिए बिना ब्याज के कर्ज आदि शामिल हैं। चुनाव से पहले उन्होंने एससी और एसटी समुदाय के लिए 23 करोड़ रु. की कई योजनाएं भी शुरू की थीं।
2014 के आम चुनाव में विधानसभा सीटों पर पार्टियों की बढ़तसमुदाय | कांग्रेस | भाजपा | जेडीएस | कुल |
एससी | 16 | 18 | 02 | 36 |
एसटी | 07 | 08 | 00 | 15 |
जनरल | 54 | 106 | 13 | 173 |
कुल | 77 | 132 | 15 | 224 |
कर्नाटक में परिवारवाद: भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस नेताओं के 52 सगे मैदान में
- कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, भाजपा और जेडीएस ने परिवारवाद की पूरी फौज चुनावी मैदान में उतार रखी है। राज्य में 12 मई को होने वाले वोटिंग के लिए 2,655 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें से 2436 पुरुष और 219 महिला हैं।
- राजनीतिक दलों के परिवारवाद को देखें तो कुल 52 सगे-संबंधी उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। कर्नाटक में जेडीएस को तो पिता-पुत्र की पार्टी के नाम से जाना ही जाता है। पर इस मामले में कांग्रेस और भाजपा भी ज्यादा पीछे नहीं है। दोनों पार्टियों ने चुनाव जीतने के फॉर्मूले पर अपने नेताओं के सगे-संबंधियों को खूब टिकट दिए हैं।
- जेडीएस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के दोनों बेटे-बहू चुनाव मैदान में हैं। भाजपा और कांग्रेस के सीएम पद के उम्मीदवारों के बेटे भी चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं।
# प्रमुख बड़े नेताओं के ये करीबी मैदान में हैं
1) एचडी देवगौड़ा (पूर्व प्रधानमंत्री): जेडीएस चीफ
- बेटा एचडी रेवन्ना, एचडी कुमारस्वामी, बहू- भवानी रेवन्ना, अनिथा कुमारस्वामी
2) सिद्दारमैया: मुख्यमंत्री
- खुद 2 सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं, बेटे- यतींद्र भी मैदान में हैं।
3) बीएस येद्दियुरप्पा: भाजपा के सीएम उम्मीदवार
- इनके अलावा बड़ा बेटा राघवेंद्र चुनाव मैदान में हैं।
4) गृह मंत्री रामलिंगा रेड्डी
- बेटी सोमैया रेड्डी भी लड़ रहीं।
5) कानून मंत्री टीवी जयेंद्र
- बेटा संतोष जयचंद।
6) भाजपा नेता जनार्दन रेड्डी
- इनके दोनों भाई- सोमेश्वर, करुणाकरण रेड्डी मैदान में।
7) मल्लिकार्जुन खड़गे
- बेटा प्रियांक खड़गे कलबुर्गी से।
8) वीरप्पा मोइली
- बेटा हर्ष मोईली भी लड़ रहे हैं।
9) मार्ग्रेट अल्वा
- इनकी बेटी निवेदिता अल्वा कांग्रेस के टिकट पर हैं।
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